क्यों तन्हाईयों के आगोश में चला जा रहा हूँ मैं ,
मुझे नहीं है पता, कहा हूँ मै, और कहाँ चला जा रहा हूँ |
क्यों इन अनजान राहों में खोता जा रहा हूँ,
मुझे पता नहीं क्या करना था और क्या करने जा रहा हूँ मैं |
शायद कभी तो मिलेगी मुझे मेरी मंजिल यही सोचे जा रहा हूँ,
शायद कभी तो होगा इन भटकती राहों का अंत ,
इसीलिये जिए जा रहा हूँ मैं |
मुझे कोई तो रोको , मुझे कोई तो संभालो ,
मै गिरा हुआ हूँ, और गिरता जा रहा हूँ मै |
ना जाने किसकी तलाश है मुझे जिसे खोजता जा रहा हूँ मैं |
आखिर क्या हूँ मैं, कौन हूँ मैं , क्यों नहीं समझ पा रहा हूँ मैं ,
हर दिन के उदय के साथ नयी आस जगाता हूँ मैं ,
और हर रात के साथ उसके अँधेरों में और खोता जाता हूँ मैं |
काश ऐसा होता कि मेरी जिंदगी भी खुशियों कि सौगात होती ,
काश ऐसा होता कि मैं भी किसी के लिए खुशियों का आगाज होता |
शायद इन पथरीली राहों पे नंगे पांव ही चलना होगा ,
शायद इन भटकती राहों में और भटकना होगा |
आखिर कब तक धैर्य कि इस डोर को संभाले रहूँ मैं,
और कब तक इस डोर के टूटने का इन्तजार करता रहूँ मैं |
जिस दिन ये डोर टूटेगी, कहाँ होऊंगा मैं नहीं जानता ,
फिर भी इस डोर को संभाले जा रहा हूँ मैं |
क्यों तन्हाईयों के आगोश में..........
written during college days
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