Tuesday, September 28, 2010

yeh duniya hai kya?

यह दुनिया है कभी ना समझ पाया मै, इसका क्या है दस्तूर कभी ना जान पाया मै |
कभी लगते यहाँ खुशियों के मेले कभी घिर आते गमो के काले अँधेरे |
कभी लगता है मै हूँ शायद सबसे खुशनसीब , कभी लगता मुझसे बदनसीब नहीं कोई |
कभी मुझसे मिलने आते सभी , कभी मेरे जाने पर भी नहीं मिलता मुझसे कोई |
यहाँ खुशियों में देते है पराये भी साथ , और गम में हो जाते है कुछ अपने भी दूर |
कभी लगता है ये दुनिया है कितनी खूबसूरत , कभी लगता इस दुनिया से बुरा कुछ नहीं |
कभी ये अहसास दिलाती है मुझे अपने होने का , कभी ये बन जाती बिलकुल अनजान |
कभी लगता है मै इस दुनिया से कभी ना जाऊ , कभी लगता है मै इस दुनिया में आया ही क्यों |
यह दुनिया है कभी ना समझ पाया मै, इसका क्या है दस्तूर कभी ना जान पाया मै |

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