Friday, January 28, 2011

क्यों तन्हाईयों के आगोश में चला जा रहा हूँ मैं |



क्यों तन्हाईयों के आगोश में चला जा रहा हूँ मैं ,
मुझे नहीं है पता, कहा हूँ मै, और कहाँ चला जा रहा हूँ |
क्यों इन अनजान राहों में खोता जा रहा हूँ,
मुझे पता नहीं क्या करना था और क्या करने जा रहा हूँ मैं |

शायद कभी तो मिलेगी मुझे मेरी मंजिल यही सोचे जा रहा हूँ,
शायद कभी तो होगा इन भटकती राहों का अंत ,
इसीलिये जिए जा रहा हूँ मैं |

मुझे कोई तो रोको , मुझे कोई तो संभालो ,
मै गिरा हुआ हूँ, और गिरता जा रहा हूँ मै |
ना जाने किसकी तलाश है मुझे जिसे खोजता जा रहा हूँ मैं |

आखिर क्या हूँ मैं, कौन हूँ मैं , क्यों नहीं समझ पा रहा हूँ मैं ,
हर दिन के उदय के साथ नयी आस जगाता हूँ मैं ,
और हर रात के साथ उसके अँधेरों में और खोता जाता हूँ मैं |

काश ऐसा होता कि मेरी जिंदगी भी खुशियों कि सौगात होती ,
काश ऐसा होता कि मैं भी किसी के लिए खुशियों का आगाज होता |

शायद इन पथरीली राहों पे नंगे पांव ही चलना होगा ,
शायद इन भटकती राहों में और भटकना होगा |

आखिर कब तक धैर्य कि इस डोर को संभाले रहूँ मैं,
और कब तक इस डोर के टूटने का इन्तजार करता रहूँ मैं |

जिस दिन ये डोर टूटेगी, कहाँ होऊंगा मैं नहीं जानता ,
फिर भी इस डोर को संभाले जा रहा हूँ मैं |

क्यों तन्हाईयों के आगोश में..........

Saturday, October 2, 2010

ek bholi si ladki

एक भोली - भाली सी वो लड़की ,
कुछ अल्हड सी , कुछ नटखट सी वो लड़की ,
हर दुःख से अनजान सी लगती वो लड़की ,
चारों तरफ खुशिया बिखेरती वो लड़की ,
अपने भाई-बहनों से लडती- झगडती ,
कभी डांटने पर रूठ कर बैठ जाती ,
तो कभी दुलारने पर खिल सी जाती वो लड़की |
उमंगो से भरी व रोज नए सपने बुनने वाली वो लड़की ,
हर लड़की कि तरह अपने सपनों के राजकुमार का इंतजार करती वो लड़की |

बन जाएगी एक ही दिन में लड़की से औरत वो लड़की ,
हो जाएगी पराई एक ही दिन में अपने बाबुल से ,
दूर हो जाएगी उन सखियों से , जिनके साथ कभी खेली थी वो लड़की |
गुम हो जाएँगी उसकी शरारते , अल्हड़पन और हँसी ,
घिर जाएगी बहुत से बोझो तले |
महकाया था कभी जिसने जन्म लेकर अपने बाबुल का आँगन ,
अब फैलाएगी खुशियाँ अपने पिया के घर में |

एक भोली - भाली सी वो लड़की ,
कुछ अल्हड सी , कुछ नटखट सी वो लड़की.......................

Kaise Bhulye ja sakenge ye Din- based on my college memories

कैसे भुलाये जा सकेंगे ये कालेज लाइफ के दिन,
जितना भी भूलना चाहेंगे उतना और याद आयेंगे ये दिन |
भले ही भूल जाये क्या थी pg और md ,
पर कैसे भूल पाएंगे रातभर जागकर उनकी शीटो को करना टोपो |
भले ही क्षीण पड़ जाएँगी दोस्तों कि यादें ,
पर कैसे भूल पाएंगे उनके साथ गुजरे वो क्षण और बातें |
कैसे भुलाई का सकेंगी वो चाय जी थडिया ,
जहाँ उठता था रोज एक नया मुद्दा ,
रहती थी नजरे आने -जाने वाले लोगो पर ,
और जहां वाणी को देते थे एक नया आयाम|
आखिर कैसे भूल पाएंगे होस्टल लाइफ के वो दिन ,
जब पढ़ते थे उपन्यास रात भर और खेलते थे ताश दोस्तों के साथ |
जब मनाते थे किसी का बर्थडे रात को,
और करते थे दूसरो को परेशान |
ये दिन हम कभी ना भुला पाएंगे ,
जितना भी भूलना चाहेंगे उतने और याद आयेंगे ये दिन |
कैसे भूल पाएंगे वो दिन जब जाते थे शादियों में बनकर फर्जी मेहमान,
कहते थे शादी को फर्जी , और करते थे अपना गुणगान |
ये कालेज के दिन भी कैसे निराले ,
चाहे रहती हो जेब में कडकी,
पर उधारी कि छत्रछाया में रहते है हमारे शौक नवाबी |

परीक्षायों के दिन आने पर हो जाता है यहाँ का मौसम बिलकुल बदला ,
हमारे छात्र चाय पीने का वक्त भी पढाई में लगाते है , और तो और किताबें भी कैंटीन और चाय कि थडिया पर लेकर जाते है |
अगर इनको कोई देखे तो यकीं नहीं कर सकता ,
मैंने पहले जो कहा उसमे थी थोड़ी भी सच्चाई |

कुछ भी कहो कालेज लाइफ के दिन है बड़े निराले ,
नहीं भुलाये जा सकेंगे ये दिन ,
जितना भी भूलना चाहेंगे उतना और याद आयेंगे ये दिन |

Tuesday, September 28, 2010

yeh duniya hai kya?

यह दुनिया है कभी ना समझ पाया मै, इसका क्या है दस्तूर कभी ना जान पाया मै |
कभी लगते यहाँ खुशियों के मेले कभी घिर आते गमो के काले अँधेरे |
कभी लगता है मै हूँ शायद सबसे खुशनसीब , कभी लगता मुझसे बदनसीब नहीं कोई |
कभी मुझसे मिलने आते सभी , कभी मेरे जाने पर भी नहीं मिलता मुझसे कोई |
यहाँ खुशियों में देते है पराये भी साथ , और गम में हो जाते है कुछ अपने भी दूर |
कभी लगता है ये दुनिया है कितनी खूबसूरत , कभी लगता इस दुनिया से बुरा कुछ नहीं |
कभी ये अहसास दिलाती है मुझे अपने होने का , कभी ये बन जाती बिलकुल अनजान |
कभी लगता है मै इस दुनिया से कभी ना जाऊ , कभी लगता है मै इस दुनिया में आया ही क्यों |
यह दुनिया है कभी ना समझ पाया मै, इसका क्या है दस्तूर कभी ना जान पाया मै |

kaun ho tum

कौन हो तुम जो मेरे ख्यालो में बसी रहती हो , कौन हो तुम जो मेरे ख्वाबो में आती रहती  रहती हो |
कौन तो तुम जिसकी आहट अक्सर सुने देती है मुझे ,
कौन हो तुम जिसके साये को हरदम पास महसूस करता हूँ मै,
कौन हो तुम जिसके लिए बेक़रार हूँ  मै हर घडी हर पल |
कौन हो तुम जो सावन की बरसात की तरह रिमझिम  सी बरस जाती हो ,
जिसके आने से गम में ख़ुशी , अँधेरे में रौशनी और बेजानो में भी जान आ जाती है ,
जिसके आने से महफ़िल जगमगा जाती है और बुझी शमाएँ भी जल जाती है |
कौन हो तुम जिसकी कभी कोई मिसाल ना दे पाया मै ,
जिसको दी हर उपमा मुझे फीकी जान पड़ी |
कौन हो तुम जिसकी झील सी गहराई कभी ना नाप पाया मै ,
जो मुझे जिस भी हालात में मिली , मेरी आकांक्षाओ से ऊंची मिली |
कौन हो तुम जिसने मुझे जीने का मकसद दिया ,
जिसने मुझे जीवन के हर मोड़ पर जीने का अहसास  दिया |
कौन हो तुम जो मेरी प्रेरणा बन सदा प्रेरित करती हो मुझे ,
जो निराशा में भी आशा बन आत्मबल देती हो मुझे |
कौन हो तुम जो मेरी जिंदगी से भी बढ़कर हो मेरे लिए |
कौन हो तुम , कौन हो तुम , कौन हो तुम |

Monday, September 27, 2010

Ek Bar Pyar Karke to dekho

एक बार प्यार करके तो देखो
धरती पर बन ना जाये स्वर्ग तो कहना , एक बार प्यार करके तो देखो। 
जीवन क्या है जान न जाओ तो कहना , एक बार किसी का बन के तो देखो ।

कौन है अपना,  कौन पराया फिर इन बातो मे क्या है रह्ना , 
तेरा क्या है , मेरा क्या है भूल ना जाओ तो कहना  , 
सब मिल कर एक बार  गीत गाकर तो देखो ।

क्या ढूढ़ते तो तुम यहाँ- वहाँ , क्यों भटकते हो तुम इधर- उधर, 
सब मिलेगा तुम्हे अपने अन्दर , एक बार अपने मन को टटोल कर तो देखो |
 
क्यों हो अनजान उस रहस्य से, जिसमे सारी सृशटी समाई ,
जो मानवजन के लिए वरदान है और इस प्रकृति का उपहार है
,
उस रस को एकबार आत्मसात करके तो देखो
, एक बार प्यार करके तो देखो|

ये दुनिया तो रोकेगी तुम्हे , टोकेगी और बरगलाएगी , पर तुम ना रुकना , तुम ना पीछे हटना , एक तुम्ही तो हो जो बदल सकते हो इस जहाँ को , एक बार , सिर्फ एक बार प्यार करके तो देखो |

तेजप्रकाश वर्मा|